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गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :294
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1196
आईएसबीएन :81-293-0153-9

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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...

मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन

 

अलर्कने कहा- महाभागे! आपने राजनीति- सम्बन्धी धर्मका वर्णन किया। अब मैं वर्णाश्रमधर्म सुनना चाहता हूँ। मदालसा बोली- दान, अध्ययन और यज्ञ- ये ब्राह्मणके तीन धर्म हैं तथा यज्ञ कराना, विद्या पढ़ाना और पवित्र दान लेना- यह तीन प्रकारकी उसकी आजीविका बतायी गयी है। दान, अध्ययन और यज्ञ- ये तीन क्षत्रियके भी धर्म हैं। पृथ्वीकी रक्षा तथा शस्त्र ग्रहण करके जीवननिर्वाह करना यह उसकी जीविका है। वैश्यके भी दान, अध्ययन और यज्ञ- ये तीनों ही धर्म हैं। व्यापार, पशुपालन और खेती - ये उसकी जीविका हैं। दान, यज्ञ और द्विजातियोंकी सेवा- यह तीन प्रकारका धर्म शूद्रके लिये बताया गया है। शिल्पकर्म, द्विजातियोंकी सेवा और खरीद-बिक्री-ये उसकी जीविका हैं। इस प्रकार ये वर्णधर्म बतलाये गये हैं। अब आश्रमधर्मों का वर्णन सुनो। यदि मनुष्य अपने वर्णधर्मसे भ्रष्ट न हो तो वह उसके द्वारा उत्तम सिद्धिको प्राप्त होता है और निषिद्धकर्मोंके आचरणसे वह मृत्युके पश्चात् नरकमें पड़ता है।

उपनयन-संस्कार होनेपर ब्रह्मचारी बालक गुरुके घरमें निवास करे। वहाँ उसके लिये जो धर्म बताया गया है, वह सुनो। ब्रह्मचारी वेदोंका स्वाध्याय करे, अग्निहोत्र करे, त्रिकाल स्नान करे, भिक्षाके लिये भ्रमण करे, भिक्षामें मिला हुआ अन्न गुरुको निवेदित करके उनकी आज्ञाके अनुसार ही सदा उसका उपयोग करे, गुरुके कार्यमें सदा उद्यत रहे, भलीभाँति उन्हें प्रसन्न रखे, गुरुके बुलानेपर एकाग्रचित्तसे तत्परतापूर्वक पढ़े, गुरुके मुखसे एक-दो या सम्पूर्ण वेदोंका ज्ञान प्राप्त करके गुरुके चरणोंमें प्रणाम करे और उन्हें गुरुदक्षिणा देकर गृहस्थाश्रममें प्रवेश करे। इस आश्रममें आनेका उद्देश्य होना चाहिये- गृहस्थाश्रम-सम्बन्धी धर्मोंका पालन। अथवा अपनी इच्छाके अनुसार वह वानप्रस्थ या संन्यास-आश्रममें प्रवेश करे अथवा वहीं गुरुके घरमें सदा निवास करते हुए ब्रह्मचर्यनिष्ठताको प्राप्त हो-नैष्ठिक ब्रह्मचारी बन जाय। गुरुके न रहनेपर उनके पुत्रकी और पुत्रके न रहनेपर उनके प्रधान शिष्यकी सेवा करे। अभिमानशून्य होकर ब्रह्मचर्य-आश्रममें रहे।

जब गृहस्थाश्रममें आनेकी इच्छा लेकर ब्रह्मचर्य- आश्रमसे निकले, तब अपने अनुरूप नीरोग स्त्रीसे विधिपूर्वक विवाह करे। वह स्त्री अपने समान गोत्र और प्रवरकी न हो। उसके किसी अङ्गमें न्यूनाधिकता अथवा कोई विकार न हो। गृहस्थाश्रमका ठीक-ठीक सञ्चालन करनेके लिये ही विवाह करना चाहिये। अपने पराक्रमसे धन पैदा करके देवता, पितर एवं अतिथियोंको भक्तिपूर्वक भलीभाँति तृप्त करे तथा अपने आश्रितोंका भरण-पोषण करता रहे। भृत्य, पुत्र, कुलकी स्त्रियाँ, दीन, अन्ध और पतित मनुष्योंको तथा पशु-पक्षियोंको भी यथाशक्ति अन्न देकर उनका पालन करे। गृहस्थका यह धर्म है कि वह ऋतुकालमें स्त्री- सहवास करे। अपनी शक्तिके अनुसार पाँचों यज्ञोंका अनुष्ठान न छोड़े। अपने विभवके अनुसार पितर, देवता, अतिथि एवं कुटुम्बीजनोंके भोजन करनेसे बचे हुए अन्नको ही स्वयं भृत्यजनोंके साथ बैठकर आदरपूर्वक ग्रहण करे। यह मैंने संक्षेपसे गृहस्थाश्रमके धर्मका वर्णन किया है।

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    अनुक्रम

  1. वपु को दुर्वासा का श्राप
  2. सुकृष मुनि के पुत्रों के पक्षी की योनि में जन्म लेने का कारण
  3. धर्मपक्षी द्वारा जैमिनि के प्रश्नों का उत्तर
  4. राजा हरिश्चन्द्र का चरित्र
  5. पिता-पुत्र-संवादका आरम्भ, जीवकी मृत्यु तथा नरक-गति का वर्णन
  6. जीवके जन्म का वृत्तान्त तथा महारौरव आदि नरकों का वर्णन
  7. जनक-यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापों से विभिन्न नरकों की प्राप्ति का वर्णन
  8. पापोंके अनुसार भिन्न-भिन्न योनियोंकी प्राप्ति तथा विपश्चित् के पुण्यदान से पापियों का उद्धार
  9. दत्तात्रेयजी के जन्म-प्रसङ्ग में एक पतिव्रता ब्राह्मणी तथा अनसूया जी का चरित्र
  10. दत्तात्रेयजी के जन्म और प्रभाव की कथा
  11. अलर्कोपाख्यान का आरम्भ - नागकुमारों के द्वारा ऋतध्वज के पूर्ववृत्तान्त का वर्णन
  12. पातालकेतु का वध और मदालसा के साथ ऋतध्वज का विवाह
  13. तालकेतु के कपट से मरी हुई मदालसा की नागराज के फण से उत्पत्ति और ऋतध्वज का पाताललोक गमन
  14. ऋतध्वज को मदालसा की प्राप्ति, बाल्यकाल में अपने पुत्रों को मदालसा का उपदेश
  15. मदालसा का अलर्क को राजनीति का उपदेश
  16. मदालसा के द्वारा वर्णाश्रमधर्म एवं गृहस्थ के कर्तव्य का वर्णन
  17. श्राद्ध-कर्म का वर्णन
  18. श्राद्ध में विहित और निषिद्ध वस्तु का वर्णन तथा गृहस्थोचित सदाचार का निरूपण
  19. त्याज्य-ग्राह्य, द्रव्यशुद्धि, अशौच-निर्णय तथा कर्तव्याकर्तव्य का वर्णन
  20. सुबाहु की प्रेरणासे काशिराज का अलर्क पर आक्रमण, अलर्क का दत्तात्रेयजी की शरण में जाना और उनसे योग का उपदेश लेना
  21. योगके विघ्न, उनसे बचनेके उपाय, सात धारणा, आठ ऐश्वर्य तथा योगीकी मुक्ति
  22. योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
  23. अलर्क की मुक्ति एवं पिता-पुत्र के संवाद का उपसंहार
  24. मार्कण्डेय-क्रौष्टुकि-संवाद का आरम्भ, प्राकृत सर्ग का वर्णन
  25. एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
  26. प्रजा की सृष्टि, निवास-स्थान, जीविका के उपाय और वर्णाश्रम-धर्म के पालन का माहात्म्य
  27. स्वायम्भुव मनुकी वंश-परम्परा तथा अलक्ष्मी-पुत्र दुःसह के स्थान आदि का वर्णन
  28. दुःसह की सन्तानों द्वारा होनेवाले विघ्न और उनकी शान्ति के उपाय
  29. जम्बूद्वीप और उसके पर्वतोंका वर्णन
  30. श्रीगङ्गाजीकी उत्पत्ति, किम्पुरुष आदि वर्षोंकी विशेषता तथा भारतवर्षके विभाग, नदी, पर्वत और जनपदोंका वर्णन
  31. भारतवर्ष में भगवान् कूर्म की स्थिति का वर्णन
  32. भद्राश्व आदि वर्षोंका संक्षिप्त वर्णन
  33. स्वरोचिष् तथा स्वारोचिष मनुके जन्म एवं चरित्रका वर्णन
  34. पद्मिनी विद्याके अधीन रहनेवाली आठ निधियोंका वर्णन
  35. राजा उत्तम का चरित्र तथा औत्तम मन्वन्तर का वर्णन
  36. तामस मनुकी उत्पत्ति तथा मन्वन्तरका वर्णन
  37. रैवत मनुकी उत्पत्ति और उनके मन्वन्तरका वर्णन
  38. चाक्षुष मनु की उत्पत्ति और उनके मन्वन्तर का वर्णन
  39. वैवस्वत मन्वन्तर की कथा तथा सावर्णिक मन्वन्तर का संक्षिप्त परिचय
  40. सावर्णि मनुकी उत्पत्तिके प्रसङ्गमें देवी-माहात्म्य
  41. मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधिको भगवतीकी महिमा बताते हुए मधु-कैटभ-वधका प्रसङ्ग सुनाना
  42. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध
  43. सेनापतियों सहित महिषासुर का वध
  44. इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  45. देवताओं द्वारा देवीकी स्तुति, चण्ड-मुण्डके मुखसे अम्बिका के रूप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना
  46. धूम्रलोचन-वध
  47. चण्ड और मुण्ड का वध
  48. रक्तबीज-वध
  49. निशुम्भ-वध
  50. शुम्भ-वध
  51. देवताओं द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान
  52. देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  53. सुरथ और वैश्यको देवीका वरदान
  54. नवें से लेकर तेरहवें मन्वन्तर तक का संक्षिप्त वर्णन
  55. रौच्य मनु की उत्पत्ति-कथा
  56. भौत्य मन्वन्तर की कथा तथा चौदह मन्वन्तरों के श्रवण का फल
  57. सूर्यका तत्त्व, वेदोंका प्राकट्य, ब्रह्माजीद्वारा सूर्यदेवकी स्तुति और सृष्टि-रचनाका आरम्भ
  58. अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
  59. सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
  60. दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
  61. वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
  62. राजा खनित्रकी कथा
  63. क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
  64. राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
  65. श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य

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